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ट्रांसजेन्डर/किन्नर कौन होते है?


कहते विकलांग उसे, जिनका अंग भंग हो जाता मिलता यह दर्जा मुझको तो, क्यों मैं स्वांग रचाता झूठा वेश खोखली ताली, दो कोठी बस खाली जीता आया नितदिन जो मैं, जीवन हैं वो गाली। घिन करता इस तन से हरपल, मन से भी लड़ता हूं कोई नहीं जो कहे तेरा, मैं दर्द समझता हूं।। हमारे समाज का ताना-बाना मर्द और औरत से मिलकर बना है. लेकिन एक तीसरा जेंडर भी हमारे समाज का हिस्सा है. इसकी पहचान कुछ ऐसी है जिसे सभ्य समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता रोती थालियों और खामोश तालियों के बीच ट्रेन या बस में चढ़ते ही आप इनकी तालियों से इन्हें पहचान लेते हैं। कभी सिग्नल पर इनकी आवाज सुनते ही आप अपनी कार के शीशे चढ़ाकर कन्नी काट जाना चाहते हैं। और कभी किसी घर में बच्चे का जन्म हुआ हो, शादी हुई हो तो वे बधाई गाते, नाचते चले आते हैं। आप भी अपनी खुशी, इच्छा और सामर्थ्य से उन्हें बधाई दे देते हैं। समाज के इस वर्ग को थर्ड जेंडर, किन्नर या ट्रांसजेन्डर के नाम से जाना जाता है। हिन्दुस्तान ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया में इनके दिल की बात और आवाज़ कोई सुनना नहीं चाहता क्योंकि पूरे समाज के लिए इन्हें एक बदनुमा दाग़ समझा जाता है. लोगों के लिए ये सिर्फ़ हंसी के पात्र बन कर रह जाते हैं। ट्रांसजेंडर वो इंसान होते हैं जिनका लिंग जन्म के समय तय किए गए लिंग से मेल नहीं खाता। इनमें ट्रांस मेन, ट्रांस वीमन, इंटरसेक्स और किन्नर भी आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक इन लोगों के पास अपना लिंग निर्धारित करने का भी अधिकार होता है। ट्रांसजेंडरों को समाज में भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है। भारत भर में तकरीबन पांच़ लाख लोग ट्रांसजेंडर समुदाय के हैं, जिन्हें आम भाषा में हम आप किन्नर भी कह देते हैं। आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े इस समुदाय के लोगों को डर, आशंका और असुरक्षा के चलते एक अलग तरह का मानसिक अवसाद झेलना पड़ रहा है। ट्रांसजेन्डर के अंदर जो विविध प्रकार की प्रतिभाएं भरी पड़ी है , उनका इस्तेमाल समाज और राष्ट्रहित में किया जाना चाहिए। इससे उन्हें भी समाज की मुख्यधारा में जुडऩे में आसानी होगी। इस समुदाय के सदस्यों में न सिर्फ नाचने-गाने की अपितु फैशन डिजाइनिंग, सौंदर्य विशेषज्ञता के साथ ही साथ शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में भी महारत हासिल है, जिसका समाज हित में उपयोग किया जाना चाहिए। मगर इसे पहले सामाजिक नजरिये में होना जरुरी है । उनकी पहचान उनकी प्रतिभा और योग्यता के बल पर आंका जाना चाहिए न कि उनके शरीर की कमियों के आधार पर। इनकों आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए। माहौल अच्छा मिले तो वो जीवन में बहुत आगे बढ़ सकते हैं। परंतु सामाजिक विषमताओं के चलते ये सारी संभावनाएं और प्रतिभाएं अंदर दबी रह जाती हैं। मुख्य परेशानी है समाज की मानसिक अक्षमता। जैसे ही लोगों को पता चलता है कि यह किन्नर है तो भेदभाव और बहिष्कार की प्रक्रिया शुरू हो जाती है । शायद इसका एक कारण अज्ञानता भी है। आज भी अधिकतर लोग स्त्रीलिंग और पुरुष लिंग को ही जानते हैं। तीसरे लिंग के बारे में उनकी जानकारी न के ही बराबर है। जब वे हिजड़ों के अस्तित्व से ही अनभिज्ञ हैं तो उनके मुद्दों के बारे में क्या समझ पाएंगे। यदि जेंडर/लिंग के बारे में लोगों की जानकारी बढ़ा दी जाय तो 80% भेदभाव अपने आप ही खतम हो जाएगा। परंतु कहीं न कहीं जानकारी के अभाव के कारण उसका रवैय्या इतना तिरस्कारपूर्ण हो गया है, जिसे कम करना है। स्कूल के पाठ्यक्रम में भी इस विषय की जानकारी देनी चाहिए और शासन तथा पुलिसकर्मियों में भी इस विषय को लेकर सहनशीलता का परिचय देना होगा। ज़्यादातर किन्नर जन्म से मर्द होते हैं, लेकिन उनके हाव-भाव ज़नाने होते हैं. इनका शुमार ना मर्दों में होता है और ना औरतों में. लेकिन ये ख़ुद को दिल से औरत ही समझते हैं. इन्हें कोई ट्रांसजेंडर के नाम से जानता है तो कोई ट्रांससेक्सुअल. लेकिन ज़्यादातर लोग इन्हें किन्नर या हिजड़े के नाम से ही जानते और पुकारते हैं। तीसरे जेंडर का होने पर जिन्हें उनके अपने ख़ुद से दूर कर देते हैं, उन्हें किन्नर समाज पनाह देता है. इनके समाज के कुछ क़ायदे क़ानून होते हैं जिन पर अमल करना लाज़मी है. ये सभी परिवार की तरह एक गुरु की पनाह में रहते हैं. ये गुरु अपने साथ रहने वाले सभी किन्नरों को पनाह, सुरक्षा और उनकी हर ज़रूरत को पूरा करते हैं. सभी किन्नर जो भी कमा कर लाते हैं अपने गुरु को देते हैं. फिर गुरु हरेक को उसकी कमाई और ज़रूरत के मुताबिक़ पैसा देते हैं. बाक़ी बचे पैसे को सभी के मुस्तक़बिल के लिए रख लिया जाता है।


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