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ट्रांसजेन्डर/किन्नरों की परेशानियाँ एवं नियम-कानून


भारत में ट्रांसजेंडर्स के समक्ष आने वाली परेशानियाँ की सूची काफी लंबी है। उनमे से प्रमुख है -


ट्रांसजेंडर समुदाय को विभिन्न सामाजिक समस्याओं जैसे- बहिष्कार, बेरोज़गारी, शैक्षिक तथा चिकित्सा सुविधाओं की कमी, शादी व बच्चा गोद लेने की समस्या आदि।


ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मताधिकार 1994 में ही मिल गया था, परंतु उन्हें मतदाता पहचान-पत्र जारी करने का कार्य पुरुष और महिला के प्रश्न में उलझ गया।


इन्हें संपत्ति का अधिकार और बच्चा गोद लेने जैसे कुछ कानूनी अधिकार भी नहीं दिये जाते हैं।


इन्हें समाज द्वारा अक्सर परित्यक्त कर दिया जाता है, जिससे ये मानव तस्करी के आसानी से शिकार बन जाते हैं।


अस्पतालों और थानों में भी इनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है।



उच्चतम न्यायालय द्वारा ट्रांसजेंडर्स के पक्ष में दिये गए महत्त्वपूर्ण आदेश जिन्हें जानना समझना जरूरी हैं-


उच्चतम न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों द्वारा स्वयं अपना लिंग निर्धारित किये जाने के अधिकार को सही ठहराया है तथा केंद्र और राज्य सरकारों को पुरुष, महिला या थर्ड जेंडर के रूप में उनकी लैंगिक पहचान को कानूनी मान्यता प्रदान करने का निर्देश दिया है ।


न्यायालय ने यह भी निर्णय दिया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश और नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया जाएगा, क्योंकि उन्हें सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा वर्ग माना जाता है।


उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को थर्ड जेंडर समुदाय के लिए समाज कल्याण योजनाएँ और इस सामाजिक कलंक को मिटाने के लिये जन जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया है ।


विधायिका ने भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2016 के माध्यम से इनके अधिकारों की रक्षा और इनकी स्थिति में सुधार के लिये प्रयास किया है। कोच्चि मेट्रो ने हाल ही में ट्रांसजेंडर समुदाय के 23 लोगों को नियमित कर्मचारी के रूप में नौकरी दी है।

21वीं सदी के 2014 में 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी की खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को ट्रांसजेंडरों (आम भाषा में जिन्हें ‘हिजड़ा’ या ‘किन्नर’ कहते हैं) के साथ सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों के तौर पर व्यवहार करने और उन्हें शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश और सरकारी सेवाओं में ‘ओबीसी की तरह’ आरक्षण उपलब्‍ध कराने को कहा और बाद में पिछले साल उन्हें समलैंगिक विवाह की मान्यता दी गयी।


ट्रांसजेंडर/ थर्डजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की गारंटी देने और उनके लिए कल्याणकारी योजनाएँ बनाने के मकसद से ‘द्रविड़ मुनेत्र कड़गम’ पार्टी से तमिलनाडु से राज्यसभा सांसद तिरुचि शिवा ने 2014 में राज्यसभा में एक ‘प्राइवेट मेम्बर बिल’ पेश किया। यह विधेयक ‘एकसमान समाज’ का निर्माण करने में अहम भूमिका निभाता है। यह ट्रांसजेंडर/थर्डजेंडर व्यक्तियों को पहचान के साथ सुरक्षा देते हुए उनकी निजता का भी पूरा सम्मान करता है| 2015 में यह बिल राज्यसभा में पास हो गया। लोकसभा में पहुँचने पर केंद्र सरकार ने इस बिल को ‘टेक-ओवर’ कर लिया और संसद की स्टैंडिंग समिति के पास इसे समझने और संशोधित होने के लिए भेज दिया गया| इस बिल में 27 बदलाव किए गए। सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्री थावरचंद गहलोत ने 19 जुलाई, 2019 को संशोधित रूप में इस बिल को लोकसभा में पेश किया। लोकसभा में यह बिल 5 अगस्त, 2019 को पास हो गया और इसे राज्यसभा में पुनः पेश होने और स्वीकृति के लिए भेज दिया गया। 26 नवम्बर, 2019 को यह बिल राज्यसभा में भी पास हो गया। किन्नर समाज के लिए आगे की कई राहें खुलती दिखाई देने लगी। इस बिल के मुख्य प्रावधान निम्नवत हैं-


• इस बिल के अनुसार- ‘ट्रांसजेंडर’ व्यक्ति वह है, जिसका लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता।इसमें किन्नर समुदाय, ट्रांसमैन, ट्रांसवूमन, इंटरसेक्स भिन्नताओं वाले और जेंडर क्वीयर्स आते हैं।किन्नर समुदाय को बिल में सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान के सन्दर्भ में भी अधिकार प्राप्त हैं|इंटरसेक्स भिन्नताओं वाले व्यक्तियों की परिभाषा में ऐसे लोग शामिल हैं, जो जन्म के समय अपनी मुख्य यौन विशेषताओं, बाहरी जननांगों, क्रोमोसोम्स या हार्मोन में पुरुष या स्त्री के शरीर के आदर्श मानकों से भिन्नता प्रकट करते हैं।


सरकार, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए उचित कदम उठाएगी। जिसमें अलग से HIV सर्विलेंस सेंटर और सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी इत्यादि शामिल हैं| समग्र चिकित्सा बीमा योजना और चिकित्सा पाठ्यक्रम की नए सिरे से समीक्षा किए जाने का प्रावधान भी किया गया। हबिल के अनुसार एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति जिला मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकता है कि ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में उसकी पहचान से जुड़ा ‘सर्टिफिकेट’ जारी किया जाए।इसे जारी करने के लिए कई सदस्यों की समिति का भी प्रावधान है।संशोधित प्रमाणपत्र तभी जारी किया जा सकता है, जब आवेदनकर्ता ने ‘पुरुष’ या ‘महिला’ के रूप में अपना ‘लिंग परिवर्तन सर्जरी’ कराई हो।


• बिल के अनुसार सरकार, समाज में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पूर्ण समावेश और भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगी।सरकार उनके रेस्क्यू (बचाव), पुनर्वास, व्यावसायिक प्रशिक्ष्ण एवं स्वरोजगार के साथ ट्रांसजेंडर संवेदी योजनाओं का सृजन एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करेगी।


• ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भीख मँगवाना, बँधुआ या बलपूर्वक मजदूरी कराना (सार्वजनिक उद्देश्य की सरकारी सेवा शामिल नहीं), सार्वजनिक स्थलों को प्रयोग से रोकना, परिवार और गाँव में निवास करने से रोकना अपराध होगा।


• शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक और आर्थिक उत्पीड़न करना गंभीर अपराध माना जाएगा।इन अपराधों के लिए 6 माह से लेकर 2 वर्ष तक की सजा का प्रावधान इस बिल में किया गया है।


• राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद- [NCT] इसमें केन्द्रीय सामाजिक न्यायमंत्री (अध्यक्ष), सामाजिक न्याय राज्यमंत्री (सह-अध्यक्ष), सामाजिक न्याय मंत्रालय के सचिव, स्वास्थ्य, गृह मामलों, आवास, मानव संसाधन विकास मंत्रालयों के प्रतिनिधि इसके सदस्य होंगे।इसके अलावा राज्य सरकारों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।किन्नर समुदाय के 5 सदस्य और ग़ैर-सरकारी संगठनों के पाँच सदस्य विशेषज्ञ के रूप में शामिल होंगे।यह परिषद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सम्बन्ध में नीतियाँ, विधान, योजनाएँ बनाने और उनके निरीक्षण के लिए केंद्र सरकार को सलाह देगी और शिकायतों का निवारण भी करेगी।




अब समझिए कि यह बिल दोनों सदनों में पास तो हो गया, लेकिन पास होने के साथ ही इसका विरोध भी प्रारंभ हो गया। ट्रांसजेंडर (ख़ास करके किन्नर समुदाय) ने इस बिल को ‘Gender Justice Murder Day’ करार दिया है और इसका विरोध कर रहे हैं।किन्नर समुदाय का कहना है कि ‘यह समुदाय की उम्मीदों/विश्वासों की हत्या करने वाला बिल है, समुदाय की ‘सुरक्षा बिल’ के नाम पर उन्हें धोखा दिया गया है।‘भेदभाव के खिलाफ निषेध’ में यह बिल ट्रांसजेंडर की सकारात्मक स्वीकार्यता के साथ ‘समान राजनीतिक साझेदारी’ के मुद्दे पर चुप है। परिवार के अक्षम होने की स्थिति में ‘पुनर्वास केंद्र’ भेजने के नाम पर भी समुदाय के साथ न्याय होता नहीं दिखता, क्योंकि अगर वे परिवार में नहीं रह सकते तो उन्हें स्वतंत्र रूप से घर बनाने और रहने का समान नागरिक अधिकार मुहैया कराया जाना चाहिए, न कि पुनर्वास के नाम पर पागलखाने जैसी जगह भेज दिया जाए।स्वास्थ्य क्षेत्रों में अलग से व्यवस्था के नाम पर भी उन्हें मुख्यधारा से अलग रखने और खाई बनाने की कोशिश की गई है। सामान्य सर्दी-जुकाम की स्थिति में भी उन्हें विशेष नियमावली के तहत सिर्फ़ उनके लिए आवंटित चिकित्सक या अस्पतालों में दिखाना पड़ेगा, जो बहुत ज्यादा विभेदनकारी है।छोटी सी बीमारी में भी ‘सेक्स लाइफ’ से सम्बंधित सवालों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करना उन्हें मानसिक रूप से परेशान कर सकता है।ये सभी प्रावधान मुख्यधारा के समाज और किन्नर समाज के बीच की खाई को सिर्फ़ बढ़ाने का काम करेंगे। ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में अगर कोई व्यक्ति अगर ‘सर्टिफिकेट’ बनवाना चाहे तो उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन करने के लिए ‘लिंग परिवर्तन सर्जरी’ कराया होना अनिवार्य होगा।उसके आलावा ये सर्टिफिकेट बनवाने के लिए कई अधिकारियों की ‘डेस्क’ से गुजरना होगा।ऐसे में एक तो सर्टिफिकेट के लिए कई डेस्कों का चक्कर काटना, महँगी सर्जरी के लिए लाखों रुपए जुटाना दिक्कत भरा होगा।समुदाय का कहना है कि ‘बिना किसी सर्जरी या ऐसे किसी तामझाम के’ उन्हें अपनी ‘लैंगिक पहचान’ तय करने का अधिकार स्वयं उस व्यक्ति को दिया जाए न कि अधिकारियों की भीड़ उनकी पहचान तय करे।यानि ‘सेल्फ़-आइडेंटिफिकेशन’ को मान्यता दी जाए और उन्हें फ़िज़ूल के मानसिक तानाव से मुक्ति मिले।ट्रांसजेंडर समुदाय के साथ किसी भी तरह के अपराध में सजा का अधिकतम प्रावधान केवल दो साल का है, भले ही वह रेप ही क्यों न हो।यह बेहद अमानवीय है, इससे उनके साथ अपराधों में बढ़ोत्तरी हो सकती है या उन्हें प्रताड़ित होने से संरक्षण के अवसर कम हो जाएँगे| यह ‘नाल्सा जजमेंट 2014’ में ट्रांसजेंडर समुदाय को प्राप्त अधिकारों का भी हनन है।


निष्कर्ष तौर पर यह साफ़ दिखता है कि सदियों से इस समुदाय को या तो हास्य पर रखा गया या उनका विभिन्न स्तरों पर इस्तेमाल किया गया।आज 21वीं सदी में कुछ संस्थाएँ साहित्यकार, समाजसेवी, शोधार्थी, सरकार और स्वयं ट्रांसजेन्डर समुदाय भी कहीं न कहीं समुदाय के अधिकारों के लिए सचेत हुए हैं।माना कि जो कार्य बहुत पहले हो जाने चाहिए, उन्हें अब किया जा रहा है।शिक्षा और रोजगार के क्षेत्रों में जब इनकी उपस्थिति बढ़ने लगेगी तो कहीं न कहीं इनके आत्मविश्वास में भी वृद्धि होगी।जो भी बिल, कानून या नियम इस समुदाय के पक्ष में बनाए या लागू किए जाएँ, उन्हें आसानी से इनके लिए ज्यादा से ज्यादा लाभकारी होना चाहिए।सार्वजनिक स्थलों पर किन्नर या ट्रांसजेंडर समुदाय के साथ सामान्य व्यक्तियों को अपनी विचारधारा और व्यवहार बदलने की आवश्यकता है।स्कूल और परिवार के भीतर उनके लिए व्याप्त भ्रमपूर्ण बातों को ख़ारिज किए जाने की आवश्यकता है।साहित्य में उनके प्रति दया और अश्लीलता की भाषा से बचने, भीड़तन्त्र और बाजारवाद से बचने और वास्तविक तथ्य रखे जाने चाहिए। शिक्षकों को स्कूलों में उनके साथ संवेदनशील व्यवहार का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। सिर्फ़ मिथकों का गुणगान करने से बात नहीं बनने वाली, इसलिए वर्तमान के खुरदरेपन को महसूस किए और उनमें सुधार किए बिना बदलाव संभव नहीं है। लाखों की संख्या वाली इस आबादी को ‘इंसान’ समझकर उसे अपनाए जाने और उनके सामान्य मानवीय अधिकार दिलाए जाने की आवश्यकता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और कानूनी अधिकारों की प्राप्ति आदि सभी मोर्चों पर ट्रांसजेंडर्स के लिये कारगर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है ताकि केवल कहने और चर्चा करने से ऊपर उठकर हम उनकी महत्ता को समझते हुए मुख्यधारा से जोड़ कर सामाजिक समानता के तरफ कदम बढ़ा सके।


अब जब थोड़ा वक़्त मिले तो दो मिनट अपनी जिंदगी और उनकी जिंदगी को आकिएगा और अगर उनकी वेदना आप तक पहुंच पाए तो इस लेख को समझते हुए बाकियों से साझा जरूर करे और साथ ही साथ कभी मौका मिले तो उस वेदना का मरहम बनने की प्रक्रिया में संलग्न होकर अपना महत्तवपूर्ण योगदान जरूर दीजिएगा।


तब तक के लिए खुश रहिए, स्वस्थ रहिए और मुस्कुराते रहिए।।

✍️ - हैप्पी सौरभ


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