बलात्कार का सामान्यीकरण (नॉर्मलाइज़ेशन) - अब लड़कों की सोच तो नहीं बदल सकते ना? (मेन विल बी मेन)
- भाई की बराबरी करने की कोशिश मत करो।अपनी सेफ़्टी के लिए ही सही, आठ बजे तक घर लौट आओ। (लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग नियम)
-तुम अकेली लड़की नहीं हो जिसके साथ हुआ है, छोटी सी बात को इतना तूल मत दो।
- मीडिया में बलात्कार के बजाय 'छेड़खानी' और 'यौन दुर्व्यवहार' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके अपराध की गंभीरता को कम करने की कोशिश करना।
- बलात्कार पर चुटकुले और मीम्स बनाना। इन विषयों पर हंसना और इनका मज़ाक बनाना।
- फिल्मों, गानों और पॉप कल्चर में स्टॉकिंग, छेड़खानी और लड़की के साथ ज़बरदस्ती को रोमांटिक (सामान्य) बताना और महिलाओं के शरीर को 'सेक्स की वस्तु' की तरह पेश करना।
पीड़िता को ही दोषी बना देना
- उसने छोटे/वेस्टर्न कपड़े पहन रखे थे।
- वो देर रात बाहर घूम रही थी।
- वो शराब पीकर लड़के के साथ थी।
- वो सेक्शुअली ऐक्टिव है, उसके कई बॉयफ़्रेंड्स रहे हैं।
- वो लड़कों से हंस-हंसकर बात करती है।ज़्यादा ही फ़्रेंडली होती है।
- वो लड़कों के साथ पब में गई थी। उसने ज़रूर कोई 'सिग्नल' दिया होगा।
पीड़िता पर शक करना
- वो दोनों तो रिलेशनशिप में थे, फिर रेप कैसा? (सहमति/कंसेंट को न समझना)
- पति कैसे पत्नी का रेप कर सकता है? शादी हुई है तो सेक्स करेगा ही ना! (मैरिटल रेप/वैवाहिक बलात्कार को नकारना, औरत की मर्ज़ी को अहमियत न देना)
- वो इतनी बदसूरत/बूढ़ी/मोटी है। उसके साथ कौन रेप करेगा? (बलात्कार को औरत के शरीर, चेहरे और उम्र से जोड़कर देखना)
- उसके शरीर पर चोट के निशान नहीं हैं, उससे रेसिस्ट क्यों नहीं किया?
- उसने उस वक़्त शिक़ायत क्यों नहीं की? अब क्यों बोल रही है?
- ज़रूर कोई पब्लिसिटी स्टंट होगा।सहानुभूति हासिल करना चाहती है।
- वो पहले भी एक शख़्स के ख़िलाफ़ शिक़ायत कर चुकी है। उसी के साथ ऐसा क्यों होता है?
ब्रो कल्चर
'ब्रो कल्चर' वो तरीका है जिसके ज़रिए मर्द एक-दूसरे को बचाने की कोशिश करते हैं, एक दूसरे के अपराधों को ढंकने की कोशिश करते हैं और एक-दूसरे को मासूम दिखाने की कोशिश करते हैं।
जैसे कि- अरे, वो तो इतना सीधा-साधा लड़का है! वो कभी ऐसा नहीं कर सकता, मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं...
ब्रो कल्चर का बेहतरीन उदाहरण है- हैशटैग #NotAllMen.
जब भी महिलाएं अपने साथ होने वाले बलात्कार, हिंसा और उत्पीड़न का बात करती हैं, पुरुषों का एक तबका #NotAllMen के हवाले से मुद्दे को कमज़ोर करने की कोशिश करने लगता है।
समाज की विडंबना समझते हुए सवाल ये उभर कर सामने आता है कि महिलाओं की शिक़ायत को पुरुष पर्सनली क्यों ले लेते हैं? शायद इसलिए क्योंकि पुरुषों का एक बड़ा वर्ग कभी-कभी ऐसे अपराधों में शामिल रहा है, इसलिए वो एकजुट होकर एक-दूसरे के लिए सुरक्षा कवच बन जाते हैं।
इतना ही नहीं, पुरुषों का एक वर्ग ऐसा भी है जो न जाने कहां से ऐसे आंकड़े जुटा लाता है कि बलात्कार के 90% मामले झूठे होते हैं और छेड़खानी के 99% मामले झूठे!
ये वही वर्ग है जिसे पुरुषों के साथ होने वाले उत्पीड़न की याद तभी आती है जब औरतें अपने उत्पीड़न की बात करती हैं।
लॉकर रूम टॉक
"भाई...उस लड़की को देखा, मैं तो एक रात के लिए भी उसके साथ चला जाऊं."
"यार, उसका फ़िगर देखा? मौका मिले तो मैं तो **** (आगे की बातचीत आपत्तिजनक भाषा की वजह से यहां नहीं लिखी जा सकती)
कुछ ऐसा ही होता है पुरुषों का लॉकर रूम टॉक
जैसा कि नाम से ही साफ़ है, लॉकर रूम टॉक यानी बंद कमरे में होने वाली आपसी बातचीत। जेंडर स्टडी में लॉकर रूम टॉक का आश्रय पुरुषों की उस आपत्तिजनक बातचीत से है जो वो महिलाओं के सामने अमूमन नहीं करते।
ये वो बातचीत है जिसमें पुरुष खुलकर महिलाओं को नीचा दिखाते हैं, उनके लिए आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं और वो सारी बातें कहते हैं जो वे सार्वजनिक तौर पर कहने से बचते हैं।
महिलाओं की स्वायत्तता से डरना
- महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होने देना।
- जितना ज़्यादा हो सके, घर में रहने को मजबूर करना।उन्हें बाहरी दुनिया से वाकिफ़ होने का मौका न देना।
- वर्जिन होने को चरित्र की महानता से जोड़ना और महिलाओं की यौनिकता को काबू में करने की कोशिश करना।
- रोमांटिक और सेक्शुअल रिश्तों में पहले करने वाली महिला को अपमानित करना।औरतों का चरित्रहनन करना।
- धर्म और परंपराओं का हवाला देकर औरतों को काबू में रखने की कोशिश करना।
बदले के लिए बलात्कार
इन सबके अलावा भी ऐसी बहुत सी बातें हैं जो रेप कल्चर को बढ़ावा देती हैं जैसे कि बलात्कार को शर्मिंदगी से जोड़ना, बलात्कार पीड़िता और उसके परिवार का सामाजिक बहिष्कार, अपराधियों को सज़ा दिलाने को लेकर उदासीन रवैया, बलात्कार को राजनीतिक-सामाजिक वजह, युद्ध के दौरान बदले के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना.
देश की संसद में बलात्कार के आरोपों से घिरे लोगों का पहुंचना और बलात्कार के आरोपों का सामना कर रहे धर्मगुरुओं के पीछे लोगों की अंधभक्ति भी रेप कल्चर के कुछ उदाहरण हैं।
ताक़तवर लोगों की असंवेदनशीलता
- निर्भया गैंगरेप मामले में अभियुक्तों के वकील एपी सिंह ने कहा था, "अगर मेरी बेटी या बहन शादी से पहले किसी के साथ संबंध रखती है या ऐसा कोई काम करती है जिससे उसके चरित्र पर आंच आती है तो मैं उसे अपने फ़ार्महाउस ले जाकर पेट्रोल छिड़ककर पूरे परिवार के सामने जला दूंगा।"
- निर्भया मामले में ही दूसरे अभियुक्त के वकील एमएल शर्मा ने कहा था, "हमारे समाज में हम लड़कियों को किसी अनजान व्यक्ति के साथ शाम 7:30 या 8:30 बजे के बाद घर से बाहर निकलने तक नहीं दे सकते हैं और आप लड़के और लड़की की दोस्ती की बात करती हैं? सॉरी, हमारे समाज में ऐसा नहीं होता है। हमारी कल्चर बेस्ट है। हमारी कल्चर में महिला की रक्षा यैसे ही की जाती है।"
- हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा था कि पहले लड़के-लड़कियां साथ घूमते हैं और फिर कुछ अनबन हो तो बलात्कार का आरोप लगा दिया जाता है।
- भारत की संसद में स्टॉकिंग पर चर्चा के दौरान कुछ सांसद हंसते और इस पर कहकहे लगाते देखे गए है।
- बलात्कार के एक मामले में आयरलैंड की अदालत में सुनवाई के दौरान वकील ने लड़की का अंडरवियर दिखाया और कहा कि उसने 'लेस वाली थॉन्ग' पहन रखी थी इसलिए शायद वो लड़के के साथ सहमति से सेक्स करना चाहती थी।
- अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने तो महिलाओं के बारे में ऐसी-ऐसी आपत्तिजनक बातें कहीं हैं जिन्हें यहां लिखा भी नहीं जा सकता.
- फ़िलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटार्टे भी महिलाओं के बारे में एक से बढ़कर आपत्तिजनक बयान देते रहते हैं।कुछ महीने पहले ही उन्होंने कहा था कि दुनिया में जब तक ख़ूबसूरत महिलाएं रहेंगी, बलात्कार होते रहेंगे।
इनमें से कुछ बातें आपको सही लग सकती हैं और कुछ बेकार लेकिन सच तो ये है कि यह सब बलात्कार के उन मुख्य कारणों मे से है जो आज भी 'रेप कल्चर' को बनाए रखने में कोई न कोई भूमिका निभा रहे।
अगर आपको लगता है नैंडोज़ चिकन के उस विज्ञापन में कुछ ग़लत नहीं है जिसमें मुर्गियां लोगों को उनके स्तन और कूल्हे छूने को आमंत्रित कर रही थीं, तो आप भी रेप कल्चर का हिस्सा हैं।
अगर आपको उस ऐश ट्रे में कुछ ग़लत नहीं लगता जिसमें लोगों को महिला की योनि में सिगरेट की राख छाड़ने के लिए उकसया जा रहा था, तो रेप कल्चर के फलने-फूलने के पीछे आपका भी हाथ है।
अगर आप निर्भया के बलात्कारियों के वकील की उस दलील से सहमत हैं कि हमारा कल्चर इसलिए बेस्ट है क्योंकि यहां लड़कियां 7 बजे के बाद घर के बाहर नहीं जातीं तो आप बेहद असंवदेनशील हैं और बलात्कार की संस्कृति को बनाए रखने में पूरी भागीदारी निभा रहे हैं।
अगर आप #MeToo मुहिम की शुरुआत करने वाली टैराना बर्क का ये कहकर मज़ाक उड़ाते हैं कि वो कितनी बदसूरत हैं और उनका यौन शोषण कौन करेगा...तो दोस्त, आप भी इस बलात्कार की संस्कृति को सींच रहे हैं।
अंत में सारांश के तौर पर एक बात समझने की जरूरत है कि पितृसत्तात्मक समाज का काट्य महिलाओं में प्रबल आत्मविश्वास रूपी बीज का रोपण द्वारा ही सम्भव है जहा पर सामाजिक समरसता को समझते हुए समता समानता की बागडोर स्थापित करनी होगी। तो कल जब आपकी बेटी, बहु, माँ, मित्र या अन्य के साथ कहीं कुछ गलत हो और आप उग्र होकर भावनाओ का समावेश समझ नहीं पाते हो, तो थोड़ा ठहर कर इन बातों के बारे मे सोचिएगा और खुद से बदलाव की नींव रखिएगा क्युकी बदलाव के पहली नींव आपको खुद के अंदर रखनी होगी। आप बदलेंगे, वक़्त बदलेगा।
हम लड़ेंगे साथी, एक सोच से, एक विचार से, समाज की कुंठित, दमित, शोषित, पीड़ित मानसिकता से और फिर उद्गम होगा एक ऊर्जा का.... तक तक के लिए, स्वस्थ रहिए, सुरक्षित रहिए।
✍️ - हैप्पी सौरभ
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